सोहराबुद्दीन शेख़ और तुलसी प्रजापति के कथित फर्ज़ी एनकाउंटर मामले में सीबीआई ने पुलिस अधिकारियों के ख़िलाफ़ चार्जशीट फ़ाइल कर दी है. इस चार्जशीट में एक आईपीएस अफ़सर विपुल अग्रवाल और कुछ पुलिसकर्मियों के नाम शामिल हैं. इससे पहले मुंबई की एक अदालत ने अमित शाह, गुलाबचंद कटारिया, आईपीएस अफ़सर अभय चूड़ास्मा, राजकुमार पांड्यन, दिनेश एन.एम, पी.पी. पांडे, गीता जोहरी समेत 18 आरोपियों को बरी कर दिया था.
राजस्थान-गुजरात के पुलिसकर्मी 12 साल पहले सीबीआई अदालत ने कई लोगों पर आरोप लगाए थे और सीबीआई जांच के बाद इस पर काफ़ी सवाल उठते रहे हैं. 2005 में सोहराबुद्दीन और 2006 में तुलसीराम प्रजापति की एनकाउंटर में मौत हो गई थी. इस मामले में गुजरात और राजस्थान पुलिस पर फर्ज़ी मुठभेड़ के आरोप लगे और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद गुजरात सीआईडी क्राइम ब्रांच ने मामले की जांच की और पुलिस अधिकारियों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया. सुप्रीम कोर्ट ने जांच पर नज़र रखते हुए 2010 में कहा था कि सीआईडी (क्राइम) की जांच अधूरी है. हत्या के मक़सद को साफ़ नहीं पाया गया जिसके बाद जांच सीबीआई को सौंप दी गई. सीबीआई ने जांच में पाया था कि सोहराबुद्दीन की हत्या राजस्थान की मार्बल लॉबी के निर्देश पर की गई थी. साथ ही उनकी पत्नी कौसर बी की भी हत्या कर दी गई. इस मामले में तुलसीराम अहम गवाह था, जिसे भी मार दिया गया. गवाहों के ऊपर दबाव ना पड़े और इंसाफ़ सही तरीक़े से हो इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को मुंबई ट्रांसफ़र कर दिया था. मुंबई में सुनवाई के दौरान बड़े नाम छूटते गए और इस मामले में मामूली अफ़सरों पर ही आरोप लगाए गए हैं. साथ ही सीबीआई पर भी सवाल खड़े होते हैं जिसके जवाब अभी तक अनसुलझे हैं.
कुछ सवाल इस तरह से हैं
1. तो क्या सोहराबुद्दीन और तुलसीराम मामले में गुजरात और राजस्थान के छोटे ओहदे के पुलिसकर्मियों ने ही यह षड्यंत्र रचा और उनको मार गिराया?
2. 2010 में जब केस सीबीआई के पास गया तो अमित शाह समेत कई लोगों को गिरफ़्तार किया गया लेकिन मुंबई की अदालत ने उन्हें बरी कर दिया. यानी इसका अर्थ यह समझा जाए कि सीबीआई जांच ग़लत थीं तो सवाल यह उठता है कि इस हत्या का आख़िर मक़सद क्या था?
3. इस मामले में मुंबई की अदालत ने आईपीएस अफ़सरों को सीआरपीसी की धारा 197 के तहत यह कहते हुए बरी कर दिया कि वह ड्यूटी कर रहे थे लेकिन छोटे पुलिस अफ़सरों को इसका लाभ नहीं मिला.
4. आईपीएस अफ़सर राजकुमार पांड्यन को अदालत ने ड्यूटी करता हुआ मानकर उन्हें बरी कर दिया लेकिन उनके ड्राइवर नाथू सिंह, सचिव अजय परमार और कमांडो संतराम को बरी नहीं किया गया जबकि वो भी ड्यूटी ही कर रहे थे.
5. ऐसे मामलों में अभियुक्तों के बरी होने के बाद सीबीआई ऊपरी कोर्ट में जाती है लेकिन अमित शाह और दूसरे बड़े लोगों के छूटने के बावजूद वह ऊपरी अदालत में नहीं गई.