
‘तू सबका ख़ुदा, सब तुझ पे फ़िदा, अल्ला हो ग़नी, अल्ला हो ग़नी
है कृष्ण कन्हैया, नंद लला, अल्ला हो ग़नी, अल्ला हो ग़नी
तालिब है तेरी रहमत का, बन्दए नाचीज़ नज़ीर तेरा
तू बहरे करम है नंदलला, ऐ सल्ले अला, अल्ला हो ग़नी, अल्ला हो ग़नी.’
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बात चाहे रसखान की हो या कामरान की सबका साथ सबका विकास तभी संभव है जब कृष्ण को कृष्ण रहने दिया जाए, किसी सियासी दल की जागीर न बनने दिया जाए।
सियासी दल मजहब के नाम पर राजनीतिक रोटियां सेंकते रहते हैं लेकिन वास्तविकता में हिंदुस्तान की आवाम के बीच धर्म की दीवार कभी आड़े आयी ही नहीं। हमारे लिए राम और रहीम, कृष्ण और करीम सब एक ही हैं। चाहे ईद हो या कृष्ण जन्माष्टमी, हम सब लोग सारे त्योहार एक साथ मिलकर मनाते हैं ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी हमसे आपसी सौहार्द की सीख ले सके।
सियासत डाल डाल तो कुदरत का इंसाफ पात पात, सियासी रोटियों के लिए राम के नाम पर हमें बांटा जा रहा था लेकिन सियासत समझ ही न सकी हम कृष्ण के नाम पर एक हो गए,
कृष्ण की लीला ऐसी जिससे सिर्फ हिंदू धर्म ही नहीं बल्कि इस्लाम, ईसाई, जैन, और सिख मजहब के लोग की जुबान पर कृष्ण की लीला का जिक्र आता रहा है और देखा जाए तो कृष्ण गंगा जमुनी तहजीब के सबसे बड़े प्रतीक के रूप में इस सरजमी पर नजर आते हैं।
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अमीर ख़ुसरो, रसखान, नज़ीर अकबराबादी और वाजिद अली शाह ने तो कृष्ण की लीलाओं का बखान करके मज़हब की सारी दीवार गिरा दी और सबको एक ही धागे में पिरो दिया।
रसखान के बाद आज न जाने कितने कामरान इस काम को अंजाम दे रहे है और निदा फ़ाज़ली का ये शेर आज की मज़हबी सियासत को आईना दिखाने के लिए काफ़ी है,,,
‘फिर मूरत से बाहर आकर चारों ओर बिखर जा
फिर मंदिर को कोई मीरा दीवानी दे मौला.’
श्री कृष्ण जन्माष्टमी के पावन अवसर पर आप सभी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। यह शुभ अवसर आपके और आपके परिवार के लिए सुख, शांति और समृद्धि लाए।