
हिन्दुस्तान के पूरे इतिहास में अगर कोई नारीवादी शासक रहा है तो वह अकबर था। वह औरंगजेब की तरह कठमुल्ला नहीं था। उसका दिमाग खुला था और उसने दुनिया देखी थी। 1600 ई के आसपास यह वह दौर था जब पहली बार अंग्रेज कारोबार करने भारत आने लगे थे। वह चाहता था कि फिरंगियों की तरह हर एक आदमी की सिर्फ एक ही बीवी हो। उस दौर में मुसलमान ही नहीं हिन्दू राजे भी कई बीवियां रखते थे। अकबर चाहता था कि फिरंगी बीवियों की तरह यहां की औरतें भी आजाद हों।
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अकबर पहला राजा था जिसने भारत में सती प्रथा पर रोक लगाई। लेकिन उसके हिन्दू मंत्रियों ने इसका विरोध किया। तब अकबर ने हुक्म दिया कि ठीक है जब पत्नी मरे तो उसके साथ उसका पति जल कर सती नहीं सता हो। इस पर भी काफी हंगामा हुआ। अंत में अकबर इस बात पर माना कि किसी भी औरत को जबरन या उसकी इच्छा के विरुद्ध सती न किया जाए। अकबर ने कई राजाओं की पत्नियों को सती होने से बचाया।
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उस जमाने में औरतों का ज्यादा बहार आना जाना नहीं था। हरम में बहू बेगमों को घुटन होती थी। तब अकबर ने आगरा के किले में ‘मीना बाजार’ शुरू किया। इस बाजार में राजघराने की बहू बेटियां, बेगमें खरीददारी करने आती थीं। सभी दुकानदार औरतें होती थीं। ज्यादातर अमीरों की बीवियां। इस बाजार में खुद बादशाह और उसके खानदान के शहजादे भी जाते थे। यह बाजार हर महीने की तीन तारीख को सजता था। बाजार में खूब रौनक रहती थी। औरतों के चेहरे खिले हुए होते थे। इसलिए इस दिन को ‘खुशरोज’ कहा जाता था। वह सच में खुशरोज था। इन बाजारों में इश्क मुहब्बत भी शुरू हो गई। अमीर सिपहसलार जैन खां कूका की बेटी से अकबर के बेटे सलीम को यहीं इश्क हुआ। बाद में अकबर ने उनकी शादी करा दी।
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अबुल फजल लिखता है कि-अकबर को बहुत खुशी होती जब उसकी बेगमें, बेटियां और बहनें उसके पास बैठतीं। उससे फरमाइशें करतीं। अकबर ने कभी दाढ़ी नहीं रखी और न ही उसके शहजादों ने। अकबर के दाढ़ी हटाते ही हजारों नौजवानों में दाढ़ी मुड़वा ली। सोचिए ये उस जमाने में कितना क्रान्तिकारी कदम था। अकबर ने कठमुल्लों की कभी परवाह नहीं की। उसके राज में पहली बार हिन्दू खुल कर सांस ले सकता था। लेकिन जहांगीर, शाहजहां और औरंगजेब जैसे उसके उत्तराधिकारी साम्प्रदायिक सौहार्द की इस परम्परा को आगे नहीं बढ़ा पाए।