बकरीद या ईद अल-अधा का त्योहार पूरी दुनिया में तीन दिनों तक मनाया जाता है। शुभ दिन पैगंबर इब्राहीम की इच्छा का सम्मान करता है। जब अल्लाह ने उन्हें अपनी सबसे प्यारी चीज बलिदान करने के लिए कहा तो स्वेच्छा से अपने बेटे इस्माइल को बलिदान कर दिया।
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धार्मिक ग्रंथों के अनुसार तब इब्राहीम की तत्परता और इस्माइल के साहस और विश्वास से अल्लाह प्रसन्न हुए। उसने लड़के को एक मेढ़े से बदल दिया जिसे बाद में एक आंखों पर पट्टी बांधकर पैगंबर इब्राहीम द्वारा बलिदान किया गया था।
अल्लाह ने इब्राहीम को उसके पुत्र के स्थान पर बलि चढ़ाने के लिए एक बकरा दिया। उसने बकरे को तीन भागों में बाँटने का आदेश दिया। जिसे गरीबों मित्रों और परिवारों में बाँट दिया गया और अंतिम भाग इब्राहीम के परिवार द्वारा रखा गया।
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अगर सोशल मीडिया से हटकर आप जमीनी हकीकत पर गौर करेंगे तो बकरीद ही सिर्फ एक ऐसा त्योहार है जिसका इंतजार मुसलमानों से ज्यादा हिंदु भाइयों को रहता है। आप गांवों में जाइए वहां लगभग हर गरीब हिंदू भाई के घर में एक दो बकरियां और एक दो बकरे मिलेंगे। आप उनसे बकरीद के चार महीने पहले बकरे खरीदने की बात करिए वो आपको तुरंत न बोल देंगे कि अभी हम बकरा नहीं बेचेंगे इन्हें हम बकरीद में बेचेंगे ताकि हमे इसके अच्छे दाम मिलें।
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वह एक बकरीद से उनको दूसरी बकरीद का इंतजार करते है। उनका सपना होता है कि बकरा बेचकर फलां फलां काम करेंगे। लड़की के लिए थोड़ा सा जेवर ले लेंगे जिससे शादी के टाइम खरीदना न पड़े। इस तरह के तमाम काम वो गरीब लोग बकरीद में बिकने वाले बकरे के जिम्मे छोड़ रखते हैं।