किसानों का आंदोलन चल रहा है। जिस तरह इसे कमजोर करने की साजिश चल रही है, ठीक उसी तरह सीएए आंदोलन को भी कमजोर करने की किस तरह से साजिश रची गई और इसके लिए किस तरह लाखों रुपए की फंडिंग की गई, उसका एक दिलचस्प मामला आपको बताता हूं।
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इसकी क्रिमिनोलॉजी इस प्रकार है-
सीएए कानून पिछले साल 11 दिसंबर को पारित हुआ। दसियों हजार लोग इसके शांतिपूर्ण विरोध में उतर आए। कुछ ही दिनों के भीतर कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने सीएए पर अमल करने से साफ इंकार कर दिया। खुद पीएम नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार बैकफुट पर आ गई। दबाव में सरकार ने कानून के समर्थन में कई ऑनलाइन और ऑफलाइन अभियान शुरू कर दिया। ठीक आज की तरह। मिस्ड कॉल अभियान के बाद बीजेपी ने सदगुरु के नाम से मशहूर जग्गी वासुदेव का एक वीडियो जारी किया।
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देश और विदेश में लाखों फॉलोवर, खासकर युवाओं में खासे लोकप्रिय जग्गी वासुदेव के 21 मिनट के वीडियो में एक लड़की सीएए से जुड़ा सवाल पूछती है। जवाब में जग्गी कहते हैं- मैंने यह कानून पढ़ा नहीं है। केवल अखबारों से इसके बारे में जाना है। वे युवाओं से कानून का विरोध करने से पहले इसे पूरी तरह से पढ़ लेने की नसीहत देते हैं (हालांकि खुद पढ़ा नहीं है) और आखिर में कहते हैं – विश्वविद्यालयों के अशिक्षित युवा पागल हो चुके हैं।
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30 दिसंबर को मोदी इसी अधकचरे वीडियो को ट्वीट करते हैं। उसी दिन सदगुरु का ईशा फाउंडेशन ट्विटर पर ओपिनियन पोल करता है, जिसमें भाग लेने वाले 11439 लोगों में से 63 फीसदी सीएए के खिलाफ विरोध को सही ठहराते हैं। फिर अमित शाह भी सदगुरु के वीडियो को फेसबुक पर पोस्ट करते हैं। वीडियो ईशा फाउंडेशन 28 दिसंबर को ही जग्गी वासुदेव के अंग्रेजी यू-ट्यूब चैनल पर डाल चुकी है।
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बीजेपी अपने फेसबुक पेज पर उसी वीडियो को 30 दिसंबर से 23 जनवरी तक टांगे रहती है और इसके लिए बाकायदा फेसबुक को दो किस्तों में विज्ञापन मिलते हैं। वीडियो को 1 करोड़ से ज्यादा बार देखा जाता है। गुजरात के एक विधायक सीएए के पक्ष में अभियान पर 1 लाख रुपए लुटा देते हैं। कुल मिलाकर 220 फेसबुक विज्ञापन 16 दिसंबर से 9 मार्च 2020 तक दिए जाते हैं, सब के सब सीएए के खिलाफ।
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ये पिछली सर्दियों की बात है- जब सीएए के पक्ष में लगभग डेढ करोड़ पोस्ट हुए। इन सबके बावजूद ट्विटर पर इंडिया डस नॉट सपोर्ट सीएए नंबर एक पर ट्रेंड करता है। इसका मतलब यह हुआ कि जिन लोगों ने जग्गी के वीडियो के बाद सीएए को समर्थन देना शुरु किया था, उसे वे जारी नहीं रख सके और बीजेपी का सारा चक्रव्यूह टूट गया। पैसे की ताकत और सोशल मीडिया पर लोकतंत्र विरोधियों से बढ़ता दबाव समाज में विभाजन पैदा करता है।
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यह केवल भारत में ही नहीं, दुनिया के कई देशों में साफ नजर आ रहा है। लेकिन बीजेपी को समझ आ गया है कि वह सोशल मीडिया पर पैसे बहाकर दुष्प्रचार वाले अभियानों से जनमत नहीं बदल सकती। इसीलिए किसान आंदोलन को कमजोर करने के लिए सरकार की दुष्प्रचारवादी रणनीति सड़कों पर उतरी हुई है। जाहिर है, इससे भी जनमत नहीं बदलने वाला। आगे बीजेपी और मोदी सरकार की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठने लगें। यह बताता है कि आंदोलन की ताकत आज भी अपनी जगह पर बरकरार है और यही बड़ी से बड़ी ताकत वाली सरकार को भी झुकाने का दम रखता है।
Post Source : Soumitra Roy की फेसबुक वाल से
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