(हिसाम सिद्दीकी)। समाजवादी पार्टी के सीनियर लीडर और रामपुर मिलक से मेम्बर असम्बली मोहम्मद आजम खान को एमपी/एमएलए कोर्ट ने हेट स्पीच के मामले में तीन साल की सजा दे दी। अच्छा फैसला है अगर कोई भी शख्स या सियासतदां जहरीली या नफरत फैलाने वाली तकरीर करे, बयानबाजी करे तो उसे सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए। आजम खान पर इल्जाम है कि लोक सभा एलक्शन के दौरान अप्रैल 2019 में मिलक के एक अवामी जलसे मंे उन्हांेने वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी, वजीर-ए-आला योगी आदित्यनाथ और उस वक्त के रामपुर डीएम आंजनेय कुमार सिंह के खिलाफ नाजेबा और नफरत फैलाने वाली तकरीर की थी। इस मामले की शिकायत बीजेपी लीडर आकाश सक्सेना ने की थी। एलक्शन कमीशन की जानिब से अनिल कुमार चौहान ने आईपीसी की दफा 153ए, 505ए और 125 के तहत मिलक कोतवाली में आजम खान के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई थी। आजम खान ने दीगर कई बातों के साथ यह भी कहा था कि जबसे नरेन्द्र मोदी देश के वजीर-ए-आजम बने हैं मुसलमानों का जीना दूभर हो गया है, मुसलमान बड़ी मुश्किल से जी रहे हैं। एमपी/एमएलए कोर्ट ने आजम खान को तीन साल की सजा सुनाते हुए उन्हें एक हफ्ते का वक्त दिया कि अगर वह चाहें तो ऊपरी अदालत जा सकते हैं। इस एक हफ्ते की मुद्दत का इंतजार किए बगैर उत्तर प्रदेश असम्बली के स्पीकर सतीश महाना ने आजम खान की मेम्बरशिप खत्म करते हुए एलक्शन कमीशन को खत लिख दिया।
जैसा हमने शुरू में ही लिखा है कि मुल्क में नफरती बयानबाजी करने वालों को सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए लेकिन आजम खान के मामले पर नजर डाली जाए तो लगता है कि जैसे चुनिन्दा (सेलेक्टिव) तरीका अख्तियार किया गया है। आजम खान दिल्ली के सरगंगा राम अस्पताल में शदीद बीमारी की वजह से दाखिल थे उस वक्त जज साहब ने जरूरत से ज्यादा जल्दबाजी उनके बयान दर्ज कराने में दिखाई फिर फटाफट सुनवाई और फैसला। अदालत तो कोई भी फैसला पुलिस के जरिए तैयार किए गए केस और पेश की गई गवाहियों की बुनियाद पर करती है इस मामले में भी ऐसा ही किया गया। हम वाजेह कर दें कि अब देश के मुसलमानों का भरोसा सिर्फ और सिर्फ अदालतों पर ही बचा है। ऐसे में अगर अदालत से किया गया फैसला इंसाफ जैसा नजर नहीं आता है तो लोगों का भरोसा टूटता है। इस मामले में भी कुछ ऐसा ही नजर आ रहा है। आम मुसलमानों में यह मैसेज गया है कि आजम खान तो बस अलामत हैं दरअस्ल उनके जरिए आम मुसलमानों को यह मैसेज दिया जा रहा है कि अपनी औकात में रहो वर्ना अगर आजम खान जैसे बड़े लीडर को इतना सख्त सबक दिया जा सकता है तो बाकी लोग अपने सिलसिले में खुद ही गौर कर लें।
जहां तक हेट स्पीच का सवाल है तो एलक्शन का वक्त हो या आम दिन गुजिश्ता कुछ सालों से बीजेपी लीडरान जितनी हेट स्पीच दे रहे हैं कोई नहीं देता लेकिन कार्रवाई किसी के खिलाफ नहीं होती यह कहां का इंसाफ है? सुप्रीम कोर्ट से निचली अदालतें तक खामोश तमाशाई बनी दिखती हैं। अब कोई भी अदालत सो-मोटो नोटिस भी नहीं लेती। ज्यादा पुरानी बात नहीं है उत्तर प्रदेश असम्बली के पिछले एलक्शन में मुल्क के वजीर-ए-आजम ने सहारनपुर से एलक्शन मुहिम शुरू की थी पहली मीटिंग मंे ही उन्होने वोटरों से पूछा था कि क्या आप लोग मुजफ्फरनगर दंगा भूल कर वोट देंगे। क्या उनका यह बयान हेट स्पीच के दायरे में नहीं आता है? श्मशान कब्रस्तान की बात भी उत्तर प्रदेश में की जा चुकी है। 2017 के चुनाव में आज के होम मिनिस्टर अमित शाह ने कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बीएसपी को ‘कसाब’ कहा था वह क्या था। दिल्ली असम्बली के पिछले एलक्शन में गोली मारो सालों को जैसे नारे लगवाए गए। प्रवेश वर्मा ने हिन्दुओं से वोट की अपील करते हुए यहां तक कहा था कि अगर आप लोग मुत्तहिद न हुए तो यह शाहीन बाग वाले तुम्हारे घरों में घुस कर बहन-बेटियों को रेप करंेगे ऐसी दर्जनों मिसालें हैं लेकिन एलक्शन कमीशन ने किसी पर मुकदमा नहीं चलवाया।
अब बात आजम खान के बयान की उन्होने कहा था कि जब से मोदी वजीर-ए-आजम बने हैं देश में मुसलमानों का जीना दूभर हो गया है। उनका यह बयान हेट स्पीच के जुमरे में आता है यह तो अदालत ने तय कर दिया लेकिन उनका बयान गलत नहीं था इस बात का सबूत बीजेपी सरकारों वाले प्रदेशों में रोज सामने आ रहे हैं। उत्तर प्रदेश में शहरियत कानून (सीएए) के खिलाफ मुजाहिरों के वक्त उत्तर प्रदेश में दो दर्जन से ज्यादा मुस्लिम नौजवान पुलिस की गोली से मारे गए थे प्रदेश के किसी भी शहर में कोई ऐसा दंगा फसाद नहीं हुआ था जिसकी वजह से पुलिस फायरिंग में इतने लोग मारे जाते लेकिन उस वक्त भी मुसलमानों को सबक ही सिखाना था। मध्य प्रदेश में जिस तरह का सरकारी बर्ताव मुसलमानों के साथ हो रहा है उसकी खबरें आए दिन अखबारात, टीवी चैनलों और सोशल मीडिया में दिखती रहती हैं। यही हाल कर्नाटक का है लेकिन सबसे ज्यादा ज्यादतियां असम में हो रही हैं। कांग्रेस से भगाए गए हेमंत बिस्वा सरमा को पीएम मोदी ने चीफ मिनिस्टर बना रखा है। वह असम में रोजाना नए-नए मुस्लिम मुखालिफ रिकार्ड कायम कर रहे हैं। गुजिश्ता दिनों तो इंतेहा ही हो गई असमियां मुसलमानों की तारीखी धरोहरों को इकट्ठा करके कुछ लोगों ने ‘मियां म्युजियम’ बनाने का एलान किया ग्वालपाड़ा जिले के दपकरभिटा में आल असम मियां परिषद के सदर एम मोहर अली ने म्यूजियम के लिए अपना मकान दे दिया। यह बात चीफ मिनिस्टर को इतनी बुरी लगी कि उन्होने पुलिस से कह कर मोहर अली उनके जनरल सेक्रेटरी अब्दुल बतिन शेख और तानूधाधूमियां को दहशतगर्दी मुखालिफ कानून यूएपीए में गिरफ्तार करा कर जेल भेजवा दिया। बिस्वा सरमा असम में मियां या मुस्लिम लफ्ज भी बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं हैं। शिकायत यह है कि पीएम मोदी ऐसी ज्यादतियों पर कुछ बोलते नहीं हैं।
हेट स्पीच के दर्जनों मामलात हैं जिनमें पुलिस और अदालतें कोई कार्रवाई नहीं कर रही हैं। नूपुर शर्मा का ही मामला है उन्हें बीजेपी से मुअत्तल कर दिया गया उन्हें ‘फ्रिंज’ भी बता दिया गया लेकिन आज तक पुलिस ने उनसे पूछगछ तक नहीं की है। मुकदमा और गिरफ्तारी का तो सवाल ही नहीं है। हिन्दू ख्वातीन की बार-बार तौहीन करने वाले डासना मंदिर पर काबिज येति नरसिंहानंद के खिलाफ ‘हेट स्पीच’ के तकरीबन बीस मुकदमे दर्ज हैं लेकिन कार्रवाई कुछ नहीं है। दिल्ली में कपिल मिश्रा का मामला सबके सामने है उनकके खिलाफ मुकदमा लिखने का आर्डर देने वाले दिल्ली हाई कोर्ट के जज का रातों-रात तबादला कर दिया गया था कपिल मिश्रा आजाद घूम रहे हैं। इस तरह ‘हेट स्पीच’ मामलात में भी मुल्जिम का मजहब और उसकी पार्टी देखकर कार्रवाई हो रही है। शिकायत इसी रवैय्ये की है।