वैसे तो आजकल कुछ भी बोलना …मतलब भक्तों के जख्म पर काँटा चुभोना है क्योंकि भक्त सही और गलत का फैसला करने के बजाय सिर्फ भक्ति का ज्ञान पेलते हैं। आजकल इतिहास बहुत परेशान है। लोग 1962 की लड़ाई पर दो-दो हाथ करने की बात कहते हैं। भले ही उनका जन्म उस समय न हुआ हो या अपनी अम्मा की गोद में अंगूठा चूस रहे हों।
सवाल ये नहीं है कि पहले क्या था ? सवाल ये भी उठता है कि अब भी वैसा या उससे भी ज्यादा बुरा हाल क्यों है ? किसान तो डीजल का इस्तेमाल करता है खेती में। अब तो खबर ये भी आ रही है कि ट्रेक्टर दिवंगत हो रहे हैं और कई जगह आत्महत्या भी कर रहे हैं ।
कानिया बाबा के सुर बदल गए हैं। विस्मृति हो या राजनाथ जी, बेचारे जेटली जी तो दिवंगत हो गए, सभी जरा अपने इतिहास पर भी नजर डालें। अब तो पेट्रोल -डीजल आडवाणी जी हो गया है और जल्द ही एमडीएच का दादा जी भी हो सकता है। अगर आपके लिए आज मजबूरी है और लोगों के लिए महंगाई को सहन करना अब देशभक्ति है तो ….जनाब ….तब क्या रासलीला थी ?
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जाहिर है कि जब माल भाड़ा बढ़ेगा तो महंगाई का पारा भी बढ़ेगा। लोग तो यह भी कह रहे हैं कि श्रीलंका में पेट्रोल का भाव इक्यावन रुपये लीटर है और श्रीलंका भारत से ही पेट्रोल खरीदता है। अब तो साफ है न कि आप देशभक्ति के नाम पर जनता के पेट पर पाँव रखे हुए हैं।
किसान तो इस देश की रीढ़ है और वही दोहरी हुई जा रही है। बाजरे का भाव ? बाजरे के बीज का भाव 310 प्रति किलो। आपको ये गणित समझ तो आता होगा न ! अब किसान क्या करे ? उसकी मेहनत का मोल तो सरकार लगाती है । समर्थन मूल्य तो ज्यादा बढ़ता नहीं और खाद, दवा और बीज पर सरकार के चम्मच नियंत्रण करते हैं। ऐसे में किसान आत्महत्या नहीं करता ….बल्कि उसको आत्महत्या के लिए मजबूर किया जाता है। इसे कहते हैं शासन द्वारा की गई हत्या।
जीडीपी अर्थात गैस, डीजल और पेट्रोल ….खूब तेजी से छलांग लगा रहे हैं। सब्जियाँ और खाने की चीजें महंगी हो रही हैं और सरकार ने मध्यम वर्ग की कमर का कचूमर निकाल दिया है। नौकरीपेशा लोगों की तो हालत बहुत ही खराब है। न महंगाई भत्ता मिला, न ही इंक्रीमेंट मिलेगा …सरकारी आदेश जो है। तो इन सब लोगों की हालत को खराब करने वाला कोई एलियन तो है नहीं ….वह तो देश की सत्ता ही है।
कुछ बड़ी-बड़ी हस्तियों ने तो अपने महंगाई पर किए गए ट्वीट तक हटाने शुरू कर दिये हैं ? जनता तो सवाल करती है। मगर कभी तो सोचिए कि अमिताभ, अनुपम और अक्षय को अपने ट्वीट क्यों हटाने पड़े ? क्योंकि सत्ता का चेहरा खूबसूरत बनाने के लिए ये ही लोग मेकअप किए थे। अब थू-थू हो रही है तो बेचारे अपना बिजनेस देखें या सत्ता भक्ति। उनकी अपनी टीआरपी की चदरिया में लोगों की टांग फँसने लगी थी। कहने को कुछ था ही नहीं सो इतिहास मिटा रहे हैं।
दरअसल पार्टी कोई भी हो, महंगाई उनके लिए ही नहीं, उनके चमचों के लिए भी फायदे का सौदा है। भारत के घरेलू उद्योग धंधों की वाट दोनों ही पार्टियों ने लगाई है। अब आत्मनिर्भर होने को कहा जा रहा है। मतलब की बात हाथ से बाहर जा चुकी है। कई साल तक आप संघर्ष कीजिये ….आप आम आदमी थे …अब खुद को गुठली आदमी कहना शुरू कर दीजिये ।
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काम हाथों में है नहीं, ऊपर से महंगाई की मार। कोरोना ने बारह करोड़ से ज्यादा लोगों की नौकरियाँ खा ली हैं। गरीब आदमी जाय तो जाय कहाँ ? मूर्तियों के आगे कीर्तन से तो फिर भी आत्मतुष्टि का भाव उपजता है, एक विश्वास पैदा होता है …मगर अब नेताओं की बात से निराशा नहीं घोर निराशा पैदा हुई है। निजीकरण ने भले मोटे लोगों की तिजोरियाँ भर दी हों मगर आम जनता के लिए जीवन में अस्थिरता ही भरी है। चाय या पकौड़े का ठेला लगा भी लिया तो खाएगा और खरीदेगा कौन, जब जेब में दाम ही नहीं होंगे। नामकरण से कोई भगवान नहीं बन जाता ।
आंकड़ों की बाजीगरी की पोल खुल चुकी है। सत्ता के वादों वाली छमिया भी अपनी लज्जा अब खो चुकी है। भूख सुरसा की तरह मुँह वाये खड़ी है और निरीह जनता को सुधारों के नाम पर उसके विशाल जबड़े में हम झोंक चुके हैं। ऊपर से बाढ़, टिड्डियों के हमले, कच्चे माल की समस्या, चीजों की महंगी होती लागत…आदमी के मुँह का निवाला छीन रही है। सरकार अपने दान दाताओं के मोहपाश में फंस चुकी है और उनके मकड़जाल से चाहकर भी आजाद नहीं हो सकती । उद्योग धंधों की बहुत कमी है, अर्थव्यवस्था का चक्र बहुत धीमा हो चुका है, ऊपर से युद्ध के बादल मंडरा रहे हैं। आम जनता को राहत की किरण नज़र नहीं आती।
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शर्म की बात ये है कि ज़िंदा रहने के लिए पढे-लिखे युवा मानरेगा में गड्ढे खोद रहे हैं। ये गड्ढे नहीं हैं बल्कि युवाओं के सपनों की कब्रें हैं। और कब्रों पर सिर्फ शैतान ही राज करता है। सुनहरे बचपन की आँखों में नमकीन आँसू भर देना अक्षम्य पाप है। इसे कोई माँ या बाप ही समझ सकता है। गुनाहगार को कोई भगवान नहीं मान सकता। महंगाई दीमक की तरह जीवन को चाट रही है। रुँधे स्वरों में लोग यही कह रहे हैं कि महंगाई डायन खाये जात है ।
Post Source : Facebook Wall केदार नाथ शब्द मसीहा
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