‘मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड ऑफ इंडिया ने पीएम मोदी और सीएम योगी को पत्र लिखा है। यह पत्र यूनिफार्म सिविल कोड के सम्बंध में लिखा गया है। बोर्ड ने कहा कि यूनिफार्म सिविल कोड पर चल रही बहस संविधान सम्मत नहीं है, सरकारों का काम समस्याओं के समाधान का है न कि धार्मिक मसले उतपन्न करना। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ऑफ इंडिया ने सिविल कोड न लागू करने की अपील की है. इस गम्भीर विषय पर चर्चा की आवश्यकता है।
बोर्ड ने पत्र में ये भी कहा है कि सिविल कोड से मुस्लिम समुदाय के निकाह तलाक विवाह के मसले प्रभावित होंगे, बोर्ड के राष्ट्रीय महासचिव मोइन अहमद खान ने पत्र लिख कर कहा है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ऑफ इंडिया इस संबंध में आपसे मुस्लिम समुदाय पर यूनिफार्म सिविल कोड को लागू न करने की अपील करता है. साथ ही यह भी कहना चाहता है कि इस गंभीर विषय पर गंभीर चर्चा संवाद की आवश्यकता है।
बोर्ड के राष्ट्रीय महासचिव मोइन अहमद खान द्वार पत्र के मुख्य बिंदु-
- धार्मिक मामलों में मुस्लिम समुदाय के निकाह, तलाक, महिलाओं का संपत्ति पर अधिकार, ऐसे अधिकार ही मुस्लिम एप्लीकेशन एक्ट 1937 से लेकर भारतीय संविधान में स्थापित हैं फिर उसके साथ यूनिफार्म सिविल कोड की आड़ में उसके साथ छेड़छाड़ की क्या आवश्यकता है?
- सरकारों का काम समस्याओं के समाधान हैं न कि धार्मिक मसले उतपन्न करना।
- देश में सभी धार्मिक समूहों को अपने रीति-रिवाज के अनुसार शादी विवाह की संवैधानिक अनुमति है।
- मुस्लिम समुदाय सहित अनेक समुदायों को अपने धार्मिक विधि के अनुसार विवाह तलाक के अधिकार भारत की स्वतंत्रता के पूर्व से प्राप्त हैं. मुस्लिम समुदाय को 1937 से इस संबंध में मुस्लिम एप्लिकेशन एक्ट के अंतर्गत संरक्षण प्राप्त है।
- मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इस संबंध में कहना चाहता है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड पर सभी धार्मिक संगठनों के समूहों सर्वप्रथम सरकार अपने मसौदे के साथ सार्थक सकारात्मक चर्चा करे।
- बिना चर्चा के यूनिफॉर्म सिविल कोड पर चल रही बहस संविधान सम्मत नहीं है।
- यूनिफॉर्म सिविल कोड पर अनेक किंतु परंतु हैं, किंतु समाज और धार्मिक समूहों से चर्चा के बिना कोई भी धार्मिक समूह इसे अंगीवृत नहीं करेगा।
- बाबासाहेब भीम राव अंबेडकर ने संविधान सभा में ये भी कहा था कि राज्य या केन्द्र सरकार इसे लागू करने के लिए पूर्व धार्मिक समुदाय या उनके धर्मगुरुओं से चर्चा के बाद ही इसे लागू करने का निर्णय ले. इसे जबरन थोपने का प्रयास उचित नहीं होगा।