
उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने तमाम गैर तस्लीम शुदा मदरसों का सर्वे कराने का फैसला किया और आनन-फानन इस फैसले पर अमल भी शुरू हो गया। जमीअत उलेमा ए हिन्द के दोनों धड़ों यानी चचा मौलाना अरशद मदनी की जमीअत और भतीजे महमूद मदनी की जमीअत ने इकट्ठा होकर दिल्ली में छः सितम्बर को मुख्तलिफ मदारिस को चलाने वालों की एक मीटिंग बुलाई। मीटिंग में कहा गया कि मदरसों के सर्वे के तरीके पर उन्हें सख्त एतराज है। क्योकि यह तरीका न सिर्फ गलत और मनमाना है बल्कि गैर मुंसिफाना भी है। इसके बाद दारूल उलूम देवबंद के नायब मोहतमिम मुफ्ती राशिद आजमी ने कहा कि सर्वे के बहाने मदरसों को एक साजिश के तहत निशाना बनाया जा रहा है। हमें मदरसों में सरकारी दखलअंदाजी किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं है। उन्होने कहा कि मदरसे संविधान के मुताबिक चल रहे हैं। इस किस्म का सख्त बयान देने वाले मुफ्ती राशिद आजमी भूल गए कि उनके मदरसे भले ही संविधान के मुताबिक चल रहे हों गुजिश्ता आठ सालों से देश तो संविधान के मुताबिक नहीं चलाया जा रहा है अगर देश संविधान और जम्हूरी उसूलों पर चल रहा होता तो तमाम गैर बीजेपी सरकारों के खिलाफ सीबीआई, ईडी और इनकम टैक्स जैसी मरकजी एजेंसियां दिन-रात सरगर्म न रहतीं और यह भी न होता कि अवाम अपने वोट के जरिए किसी पार्टी को जिता कर प्रदेशों की सरकारें बनवाते लेकिन चन्द महीनों में ही उन सरकारों पर बीजेपी का कब्जा न हो जाता।
मदरसों के खिलाफ सरकारी तौर पर जहर उगलने का काम 1998 से उस वक्त शुरू हुआ था जब लाल कृष्ण आडवानी मुल्क के होम मिनिस्टर बने थे। मदरसे दहशतगर्दी की नर्सरी हैं यह अफवाह आडवानी ने उड़वाई थी। छः साल तक वह मुल्क के होम मिनिस्टर और डिप्टी प्राइम मिनिस्टर रहे लेकिन छः सालों में एक भी मदरसे पर दहशतगर्दी सिखाए जाने का इल्जाम साबित नहीं कर सके उनके मातहत होम मिनिस्ट्री और भारत सरकार की तमाम खुफिया एजेंसियां मिलकर एक भी सबूत देश के सामने नहीं पेश कर सकीं। अब मरकज में मोदी की तो कई रियासतों में उन्हीं की बीजेपी की सरकारें हैं इसलिए एक बार फिर मदरसों पर हमले शुरू हुए हैं असम की बीजेपी सरकार ने पहले सरकारी मदरसे बंद कराए फिर गैर सरकारी मदरसों पर यह कहकर बुलडोजर चलवाना शुरू कर दिया कि उन मदरसों को चलाने वालों का ताल्लुक दहशतगर्द तंजीमों से होने का शक है। जब इल्जाम साबित हुए बगैर मदरसों पर बुलडोजर चलवाने में वजीर-ए-आला हेमंता बिस्वा सरमा पर हर तरफ से उंगलियां उठने लगीं तो उन्होने नया पैंतरा चला, गोलपाड़ा जिले के दारोगर अलगा पखिउरा चार के लोगों को पुलिस और जिला एडमिनिस्टेªशन ने बाकायदा उकसा कर और कुछ पैसे देकर मदरसे पर हमला कराकर उसे गिरवा दिया। फिर पुलिस ने बड़ी मासूमियत से बयान दे दिया कि इस मदरसे के हेड मास्टर और एक टीचर पर दहशतगर्दों से मिले होने का शक था इसलिए इलाके के नाराज लोगों ने मदरसे पर हमला करके उसे तोड़ डाला। अगर यह सच था तो पुलिस ने मदरसा तोड़ने वालों के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई क्यों नहीं की?
अब उत्तर प्रदेश में सर्वे के नाम पर मदरसों पर निशाना साधने की कोशिशें शुरू हुईं हैं। सर्वे क्या होना है एक यह कि मदरसों में कौन सा सिलेबस पढाया जाता है मदरसों में दी जाने वाली तालीम का मेयार कैसा है। मदरसा कौन चलाता है कोई एक शख्स या कोई तंजीम (संस्था), मदरसों की आमदनी का जरिया क्या है और मदरसों में टायलेट वगैरह का माकूल बंदोबस्त है या नहीं वगैरह। दुनिया जानती है कि मदरसों में सिर्फ दीन-ए-इस्लाम यानी कुरआन की तालीम दी जाती है। वही अस्ल सिलेबस होता है। कुरआन पढाने के साथ-साथ बच्चों को नमाज पढने, रोजे रखने और बेहतर किरदार का खुदा से डरने वाला इंसान बनाया जाता है। दारूल उलूम और दीगर बड़े मदरसों में आलिम, मुफ्ती, फाजिल वगैरह की डिग्रियां दी जाती हैं। जहां तक तालीम के मेयार का सवाल है वह इस लिए बेहतर होता है कि कुरआन और दीगर इस्लामी तालीम गैरमेयारी हो ही नहीं सकती। जहां तक टायलेट वगैरह की साफ-सफाई का सवाल है वह भी साफ सुथरे और तमाम सरकारी प्राइमरी से इण्टर के स्कूल कालेजों से बेहतर होती है। क्योकि कुरआन पढने और नमाज अदा करने वालों के लिए सफाई और पाक-साफ रहने की बुनियादी शर्त होती है।
सरकार दरअस्ल यह पता लगाने की कोशिश में है कि मदरसा चलाने के लिए पैसे कहां से आते हैं और कौन देता है इसकी भी मुकम्मल जानकारी जिलों में तैनात अफसरान को होती है कि तमाम मदरसे चंदे से चलते हैं। यह चंदा पचास-सौ रूपए से दस-बीस हजार तक का होता है। मदरसे चंदा देने वालों को बाकायदा रसीद देते हैं। चंदे में सिर्फ पैसा ही नहीं मिलता फसल पर गल्ला भी मिलता है अक्सर तो मोहल्ले के लोग मदरसों के बिजली बिलों की भी अदाएगी कर देते हैं। बड़ी तादाद में मदरसे चलाने के लिए लोगों ने जमीनें और दुकानें वगैरह भी वक्फ कर रखी हैं जिनकी आमदनी से मदरसे चलते है। दारूल उलूम और बड़े मदरसों को दुनिया के तमाम मुल्कों में रहकर कमाई करने वाले मुसलमान मोटी रकम चंदे की शक्ल में भेजते हैं। बेश्तर मदरसे कोई न कोई मोलवी या मोहल्ले वाले मिलकर चलाते हैं। इदारों (संस्थाओं) के जरिए चलाए जाने वाले मदरसों की तादाद बहुत कम है। सरकार दरअस्ल चंदे की रकम, मदरसों की आमदनी और कौन मदरसा चलाता है इन्हीं सवालात में मदरसों को फंसाना चाहती है। मदरसों के जिम्मेदारान का एतराज यही है कि बच्चों को अच्छी तालीम और साफ सुथरे माहौल के नाम पर सिर्फ मदरसों का ही सर्वे क्यों कराया जा रहा है अगर सरकार को बच्चों की इतनी ही फिक्र है तो जरा सरकारी स्कूलों, संस्कृत पाठशालाओं और गुरूकुल का भी सर्वे करा ले अगर ईमानदारी से सर्वे हो जाए तो सबसे खराब हालत में सरकारी स्कूल ही मिलेंगे। सरकारी स्कूलों में तालीम के मेयार की हालत यह है कि आधे से ज्यादा टीचरों को टीचर तक की स्पेलिंग नहीं मालूम है।
उत्तरप्रदेश के अकलियती बहबूद के वजीर धर्मपाल सिंह ने भी आखिर सरकारी बदनियती जाहिर ही कर दी उन्होने कहा है कि उनकी सरकार मदरसों में पढने वाले बच्चों को अस्ल धारा मेें लाना चाहती है इसलिए अब मदरसों में दीनी तालीम पढाने के लिए सिर्फ एक ही टीचर रहने दिया जाएगा, बाकी हिन्दी, मैथमेटिक, साइंस और अंग्र्रेजी वगैरह पढाने के लिए टीचर रखे जाएंगे। उन्होने कहा कि सरकार का फोकस इस बात पर है कि मदरसों के बच्चे भी डाक्टर और इंजीनियर बन सकें। अब इन कम अक्ल वजीर से कौन पूछे कि अगर भारत के संविधान ने हर किसी को यह हक दिया है कि वह अपने मजहब की तालीम अपने बच्चों को देने के लिए इदारे खोल सकते हैं। तो सरकार कौन होती है यह बताने वाली कि मदरसों में क्या पढाया जाएगा, दूसरे यह कि जिस उम्र के बच्चे मदरसों में दीन की तालीम हासिल करते हैं उस उम्र के बच्चों को आप इतने सब्जेक्ट कैसे पढा लेंगे तीसरे अगर मुसलमान अपने बच्चों को दीनी तालीम देने के लिए चंदे से मदरसा चलाते हैं तो वह सरकार की मर्जी से साइंस, मैथ, अंग्रेजी वगैरह के टीचर क्यों रखेंगे और अगर रखें तो उन टीचरों की तंख्वाह कौन देगा क्या सरकार यह सारे सब्जेक्ट पढाने के लिए रखे जाने वाले टीचरों की तंख्वाहें देंगी? चैथे क्या प्रदेश के प्राइमरी स्कूलों में इतने सब्जेक्ट पढाए जा रहे हैं? प्रदेश में छठी क्लास से तो अंग्रेजी की एबीसीडी पढाई जाती है फिर मुस्लिम बच्चों पर यह सारे सब्जेक्ट कैसे थोपे जा सकते हैं। फर्जी बयानबाजी करने में माहिर बीजेपी वजीर धर्मपाल सिंह कह रहे हैं कि मदरसे के बच्चे भी डाक्टर और इंजीनियर बने सरकार यह चाहती है। उन्हें पता ही नहीं कि बच्चे आठ-दस साल की उम्र तक ही मदरसों में तालीम हासिल करते हैं फिर आम स्कूल और कालेजों में ही जाते हैं। दारूल उलूम और बड़े मदरसों में आलिम, मुफ्ती, फाजिल वगैरह की तालीम में बड़ी उम्र के बच्चे जरूर जाते हैं। धर्मपाल सिंह तो अकलियती बहबूद के वजीर हैं यानी अल्पसंख्यक कल्याण वजीर जरा बताएं कि पौने छः साल की योगी सरकार ने अकलियती बहबूद का कौन सा काम किया है? हर साल हजारों मुस्लिम बच्चेे प्राइवेट कालेजों से डाक्टर इंजीनियर और टीचर बनकर निकलते हैं इस सरकार ने उनमें से कितनों को सरकारी नौकरियां दिलाई हैं?-हिसाम सिद्दीकी