
हेडिंग पढ़ कर चौंकिए मत, ज़रा ठहर का सोचिए, तसव्वुर कीजिए की आपकी कोई पुश्तैनी ज़मीन हो, जो आप की जिंदगी की कुल संपत्ति हो, उसे कोई कब्ज़ा कर ले, और उस ज़मीन की एक के बाद एक रजिस्ट्री हो जाए तो आपका अहसास क्या होगा ? ज़ाहिर है दिल में गुस्सा और ज़बान पर गाली, और जो कुछ आप से बन सकेगा आप करेंगे,
ऐसा ही हुआ है सुल्तानपुर में, जी हां “राजा सलीमपुर” की दादी के नाम जो 16 बीघा ज़मीन थी, उसे बेचा गया, इस की रजिस्ट्री पर रजिस्ट्री होती रही, कोर्ट कचहरी चलता रहा कि अचानक इस झगड़े के बीच नदवतुल उलमा के उस्ताद “फैज़ान नगरामी” की एंट्री होती है जिसने वो ज़मीन “डॉक्टर शोएब कुरैशी” और एक ग़ैर मुस्लिम घाघ शातिर वकील “श्रीवास्तव” को सामने रख कर नदवा के लिए खरीदना चाही, करोड़ों रुपयों की डील हुई, खतरात मोल लिए गए, लाखों रुपए से फर्ज़ी कागज़ात बनाए गए, और यह माल नदवा के फंड से खर्च होता रहा,
सवाल ये है कि नौसिखयों और नवउम्र लड़कों के हाथ इतनी रकम कैसे लगी ? एक ऐसी ज़मीन जिसमे झगड़ा हो उस में नदवा के नाम को क्यों इस्तेमाल किया गया ? दौलत ए दुनिया के लिए किसी की जायदाद को हड़पने के लिए नदवा को क्यों घसीटा गया ? एक असल वारिस की मौजूदगी में ज़मीन खेल क्यों चलता रहा ? और नदवा किस फंड से यह माली खर्च बर्दाश्त करता रहा ? यह सवालात हैं जिनके जवाब नदवा से मोहब्बत करने वाला हर इंसान बल्कि हर आम मुसलमान जानना चाहता है।
ताज़ा सूरत ए हाल यह है कि अदालत की तरफ से उस ज़मीन पर स्टे का ऑर्डर जारी कर दिया गया है, लिहाज़ा नदवा के लाखों करोड़ों रुपए इस झगड़े और दीगर खर्च के बर्बाद हुए, कोई है जो पूछे कि इसका जिम्मेदार कौन होगा ? क्या यह कह देना कि “असल मालिकान को और मुस्तहिक्कीन को मौलाना बिलाल हसनी नदवी से मिलने से रोका जाता रहा लिहाज़ा उन्हें इस सबका इल्म नहीं है” यह कैसे मुमकिन हो सकता ?
दूसरा बड़ा सवाल एक दीनी इदारा कैसे इस धांधली का हिस्सा बन सकता है ? नदवा तो आपस के झगड़ों को खत्म करने का दावेदार था, नदवा की इस हकीकी रूह को कोन लोग मौत के घाट उतार रहे हैं ? और इस सबके बीच मुर्शिदुल उम्मत मौलाना राबे हसनी कहां गायब हैं ? वो सामने आकर राजा सलेमपुर की हिमायत के बजाय घोटाला करने वालों की सरपरस्ती क्यों फरमा रहे हैं ?